पहाड़ीको गाली करते ही कोही मदेशबादी नहीं होता है – लालबाबू यादव
लालबाबू यादव |
सभासद लालबाबू यादव एक मधेस के प्रतिनिधि है । अनलाइनखबर के अन्तर्बार्ताके दौरान उनोने कहा की कृपया उने मधेसी ना कहे, अनलाइनखबर में लिखा है । वो हरेक बात पर मधेसी शब्दका उच्चारण के खिलाफ हे । वो कहते हे कृपया उने मधेसी ना कहे, वो कहते है मधेसी से पहले वो एक नेपाली है ।
वास्तवमा एमाले में प्रवेश करनेके पहले ही वो एक राष्ट्रबादी सोच के व्यक्ति थे, इसलिए होसकता हे के एमाले ने उने मनोनीत करके संबिधान सभा में पुराया ।
२८ बर्ष तक अध्यापन पेशा में रमाए हुए लालबाबू यादव ने कीर्तिपुर क्यापस से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर किए है । वो एक भिन्न राजनितिक चरित्र के व्यक्ति है । वो कहते है मुझे इस देशको कुछ देना है । वो अधिकार से ज्यादा देशके ऊपर जनताका कर्त्तव्यका बात करते है ।
वो कहते है मधेस एक भूगोल है जो नेपालका एक अभिन्न अंग है । पर इसे अब संस्कृति और जातमे जोड़ दिया है । वो कहते है, एक ब्राम्हण जो तराई में रहते है फिर भी उसे पहाड़ी कहता है ए संबिधान और समाज, वास्तव में वो एक मधेस और तराई में रहनेवाला नेपाली है ।
उनोने कहा है की उन मदेशी दलों से भी ऑफर आया था पर उनो ने बिनम्रतापुर्बक अस्वीकार किया क्यों की वो कोही भी क्षेत्रीय और जातीय पार्टीमे नहीं जाना चाहते, वो हर एक मेंची से महाकाली के व्यक्ति और हिमाल से तराई हरेक नेपालिके लिए काम करेंगे । एक जात और क्षेत्र तक वो सिमित होना नहीं चाहते है ।
वो कहते है संबिधान ने किसीको भी विभेद नहीं किया है । वो कहते है विभेद मदेशी समाज में ही कायम है, यादव यादव और राजपूत जैसा जातिका बोलबाला है । दलित छोरी बेटी के ऊपर उनके आफन्त ने अभद्रब किहे भी वो उनही को साथ देते है , और सरकारके आरक्षण भी यादव और राजपूत जैसा ब्राम्हण ने खान्छन । वो कहते है किदर है चमार डोम मुसहर जात को समानता मदेश मे ही ?
वो कहते है, दिनहुँ जैसे मधेसका और तराईका नेपाली भारतीय पुलिसका शिकार होता है । हमारा और भारतका सिमाना खुल्ला है पर एक किलो चीनी किनके लिए गए मधेस तराइ के नेपालीको भारतीय पुलिस कूटपीट करते है ।
इस तराके समस्या कोही मधेसबादी दल और दल कोही उठाता नहीं है । वो कहते है मदेशके नाम पर राजनितिक करने दलहरु मुझे मधेसबादी और अपने आपको मदेशबादी कहते है, पर पहाडिको गाली करते ही, कोही मधेसबादी नहीं होता है ।
वो कहते है हमार अपना मातृभाषा और राष्ट्रीय भाषा को उत्थान करना चाहिए नाकि हिंदी भाषाको । मैथली भाषा हिंदी भाषा के कयौं ऊपर है । वो कहते है आरक्षण मदेशमें रहने दलित को होना चाहिए, अबतक टाठा ने ही आरक्षण लिया है, गरीव चमार, डोम जैसा मदेशमे रहने जनताने पाया नहीं है ।
वो कहते है और क्षेत्रीय संघियता जहर है , इसने को ही व्यक्ति और समाजको हित नहीं कर सकता है । कोही देशमे जातीयता और क्षेत्रीयता बडेगा तो राष्ट्रीयता कमजोर होता है और जनता ने और देशने दुख झेलना पड़ता है ।
source: onlinekhabar