सरकारको मधेश जाकर जनताओको संबिधान दिखाना और बुझाना होगा
सरकारको तुरंत मधेश तराई सम्बोधन और तराई मधेश जनताके इस सम्बिधानमे समाबेश किए गए अधिकारका प्रत्याभूति करनेके लिए मधेश तराई जाना होगा । यही उत्तम उपाए होगा आंदोलन रोकनेका । १ महिने से तराई में आंदोलन चलरहा है और अभी भी रुकनेका नाम नहीं ले रहा है । कब तक सेहे सकते है तराई मधेशबासी ए आंदोलन ? कही कही तो आंदोलनके विरुद्ध नाराभी चला है पर अधिकांस क्षेत्र अभीभी अशांत है ।
इसलिए प्रधानमंत्री और शीर्ष दल कांग्रेस, एमाले और माओबादीके शीर्ष नेताओंको मधेश तराई जाना होगा और सर्बसाधारण जनताको समझाना होगा की इस संबिधान में क्या है और क्या नहीं , क्यूंकि अभीतक वास्तबिक मधेस और तराई बासिको पता नहीं है की इस संबिधान में क्या है और क्या क्या नहीं । उन लोगों को आंदोलनकारी दल और अतिबादी तत्व ने इतना दिमागमें भरदिया है की, तुम्हारा अधिकार इस संबिधान में नहीं है ।
पर कुछ जायज माग जनताके भी है इसे सरकारने मनन करना होगा, पर नाजायज माग तो केबल राजनितिक दलों और अतिबादी तत्वका हे, ए सरकारको और जनताको बुझना पड़ेगा ।
समाचार में छाया हुवा है भारतका धमकीके आसययुक्त पत्र और सुझाव, वास्तव में ए नेपालके निजी बिलकुल घराएसी मामला है भारतको इसमे नाराजगी जतानेका कोही हक़ नहीं, परन्तु इन सबका कारण तो ए तीन दल है । हर बार हर वक्त जब भी देशके कुछ निर्णय लेना होता था वो लोग भारत पहोचते थे । इसीलिए भारतका हस्तक्षेप नेपालमे बनरहेता है । हमार अपना नेता सुद्द और देश निष्ठां से भरा होता तो ए दिन नहीं आता ।
वास्तव में इस संबिधान में कुछ गलतिया हो सकता है परन्तु इसने मधेस और तराईको अधिकारसे बंचित नहीं किया है । एक भारतीय प्रोफेसर ने भी कहा है की नेपालके संबिधान भारतके संबिधान से ज्यादा प्रभावकारी और अच्छा है ।
आजकल हमारा अपने लोग ही सोशल साइट्स पर झगड़ते होए देखते है, हमार मधेसी भाईओ ने पहाड़ी भाइओ को गाली करते हुए देखते है पर ए तो नेताओंका करतूत है । तो अपनेसे ही हम क्यों लडे ? लड़ें तो इन नेताओ से लड़े जीनोने देशको आज इस परिस्थिति पर पहुचाया, उन नेताने लड़े जीनोने हमार आपसी भातृत्वको मिटाना कोसिस कर रहे है । होसकता केहि पहाड़ी जो मधेसीको हेप्लेता होगा पर सभी ऐसा नहीं है । आपने कभी कोही पहाड़ी से दोस्ती किया है और आपका कोही पहाड़ी दोस्त है ? यदि हे तो आपको पता होगा उनलोगोंका दुःख । उनलोगो और हमारा दुःखका प्रकार फरक हो सकता है पर दुःख तो उनको भी उतना ही है जितना हमें । आप कुछ मुट्ठी भरके पहाड़ी बाहुनको नेता होतेहुए देखरहे हो और तमाम बाहुन और क्षेत्रीको गाली कररहे हो, पर आप कभी रुकुम रोल्पा जुम्ला, डोल्पा, और काठमांडू से बाहेक कोही और जिल्ला गए हो तो आपको पता चलेगा त्यहाका दुःख । एक बाहुनीको एक मटका पानी लेने के लिए २/३ घंटा लगा कर उकालो ओरालो करना पढता है ।आपको पता है पहाड़ी कही पहाड़ी जिल्ले में जनता स्वास्थ्य सेवा लेने ना पाकर मर रहे है, हमार इधर भी ओऐसा ही है । एक किलोमीटर के दुरी पार करने के लिए उन १ घंटा २ घंटा हिड़ने पड़ता है क्यों की उधर डांडा और पहाड़ है और यातायात भी नहीं । आपमें से कोहि को विस्वास नहीं लगरहा होगा पर काठमांडू से बाहर कोही भी पहाड़ में सुखसुबिधा नहीं पर काठमाण्डूमे भी है कोही महल में तो कोही झुपड़ीमे । पर आप ए ना सोचे की सभी पहाड़ी बाहुन महल में रहते है । यहाँ नेपालमे मुट्ठीभारके लोग ही धनि है । चाहे वो तराई में होस या पहाड़ या हिमाल । तराई में मुठीभरके यादव, राजपूत है तो पहाड़मे मुठीभरके बाहुन । पर अधिकांस नेपाली जो मधेसी मूल और तराई मुलके है या पहाड़ी मुलके सभी दुःख झेल रहे है । और इन सभीका एक मात्र कारण है हमार नेता लोग वो मंत्री होते ही जनताके सभी दुःख भुलते है । मंत्री और सरकारमे ना होतो आंदोलन और हड़ताल करके सर्बसाधारण को दुःख दे ते है ।
इसलिए हम जो कोही भी चाहे वो मदेशमे रहे या हिमाल या पहाड़, हम नेपाली है एक दुखित नेपाली जीसने दुःख सहनेके लिए ही इस धरती पे जन्म लिया है । इसलिए इस दुःखसे बाहर होनेके लिए हमें एक होना होगा । पहाड़ी नहीं नेपाली बनना होगा, मधेसी से पहले नेपाली बनना होगा तब हम अपने देशको सुन्दर शांत बिशाल बना सकते है ।